वैदिक सभ्यता से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
“वैदिक सभ्यता से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर” सिंधु सभ्यता जब पतन हुई उसके बाद एक नवीन संस्कृति सामने आयी उसके बारे हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से प्राप्त होती है। इसलिए इस काल को हम वैदिक काल या वैदिक सभ्यता के नाम से जानते हैं। इस नवीन सभ्यता के प्रवर्तक आर्य लोग थे इसलिए कभी-कभी इस सभ्यता को आर्य सभ्यता भी कहा जाता है। आर्य शब्द का अर्थ- कुलीन, उत्कृष्ट, श्रेष्ठ, अभिजात्य, उदात्त आदि होता है। यह काल 1500 ई.पू. – 600 ई.पू. तक अस्तित्व में रहा।
वैदिक सभ्यता का विभाजन :
वैदिक सभ्यता को दो भागों में बांटा गया है- (1) ऋग्वैदिक काल / पूर्व वैदिक काल जिसका समय 1500 ई.पू.-1000 ई.पू. तथा (2) उत्तर वैदिक काल जिसका समय 1000 ई.पू.-600 ई.पू. तक का है। पूर्व वैदिक काल में ऋग्वेद की रचना हुई तथा उत्तर वैदिक काल में सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद की रचना हुई इसके अलावा अन्य ब्राह्मण ग्रंथों जैसे- आरण्यकों एवं उपनिषदों की रचना भी इसी काल में की गई थी। इसके कालक्रम के बंटवारे का सबसे मुख्य कारण यह है कि 1000 ईसा पूर्व के आस पास लोहे की खोज हुई और उस लोहे ने सब कुछ बदल कर रख दिया तो यह जो बदलाव का दौर है वह 1000 ईसा पूर्व के आसपास माना जाता है।
आर्यों का मूल निवास स्थान :
वैदिक सभ्यता किसकी है? आर्यों की और आर्यों का मूल निवास स्थान कौन-सा है? उस चीज को ध्यान में रखते हुए कुछ विद्वानों ने अपने मत दिए हैं, जैसे-
- मैक्समूलर ने आर्यों का मूल निवास स्थान ‘मध्य एशिया’ को बताया है। वर्तमान समय में मैक्समूलर का मत ही स्वीकार्य है।
- बाल गंगाधर तिलक ने इनका मूल निवास स्थान ‘उतरी ध्रुव’ को माना है। यह वर्णन इनकी पुस्तक “The Arctic Home of the Aryans” में मिलता है।
- स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान तिब्बत था। यह वर्णन इनकी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ एवं ‘इंडियन हिस्टोरिकल ट्रेडिशन’ में मिलता है।
- डॉ अविनाश चन्द्र दास ने कहा है कि ये सप्त सैंधव के रहने वाले थे।
1. ऋग्वेदिक काल (1500-1000 ई०पू०)
राजनीतिक विस्तार :-
डॉ. जैकोबी के अनुसार आर्यों ने भारत में कई बार आक्रमण किया और उनकी एक से अधिक शाखाएं भारत में आयीं। इनका सबसे महत्वपूर्ण कबीला ‘भरत’ था। इसके शासक वर्ग का नाम ‘त्रित्सु’ था। ऋग्वेद में आर्यों के पांच कबीलों का उल्लेख है वे हैं- पुरु, यदु तुर्वश, अनु और द्रुह्यु। ये पंचयन के नाम से जाने जाते थे।
आर्यों का भौगोलिक क्षेत्र :-
भारत में आर्यों का आगमन 1500 ई०पू० के आसपास हुआ। भारत में उन्होंने सबसे पहले ‘सप्त सैंधव प्रदेश’ में बसना प्रारंभ किया। ऋग्वेद से हमें इस प्रदेश में बहने वाली सात नदियों का जिक्र मिलता है। ये हैं सिंधु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), आस्किनी (चेनाब), पुरुष्णी (रावी), बिपाशा (व्यास), शतुद्रि (सतलज) आदि। ऋग्वेद में कुछ अफगानिस्तान की नदियों का भी जिक्र है, जैसे- कुभा (काबुल नदी), क्रुभु (कुर्रम), गोमती (गोमल) एवं सुवास्तु (स्वात) आदि। इससे यह स्पष्ट होता है कि अफगानिस्तान भी उस समय भारत का ही अंग था। हिमालय पर्वत का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। हिमालय की एक चोटी को मूजदन्त कहा गया है जो सोम के लिए प्रसिद्ध था। आर्यों का मुख्य पेय-पदार्थ सोमरस था। यह वनस्पति से बनाया जाता था।
आर्यों ने अगले पड़ाव के रूप में कुरुक्षेत्र के निकट के प्रदेशों पर कब्जा कर उस क्षेत्र का नाम ‘ब्रह्मावर्त’ (आर्यावर्त) रखा। ब्रह्मवर्त से आगे बढ़कर आर्यों ने गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके नजदीक के क्षेत्रों पर कब्जा कर उस क्षेत्र का नाम ‘ब्रह्मर्षि देश’ रखा। इसके बाद हिमालय और विंध्यांचल पर्वतों के बीच के क्षेत्र पर कब्जा कर उस क्षेत्र का नाम ‘मध्य प्रदेश’ रखा। अंत में उन्होंने बंगाल एवं बिहार के दक्षिणी एवं पूर्वी भागों पर कब्जा कर समूचे उत्तर भारत पर अधिकार कर लिया, बाद में इस पूरे क्षेत्र का नाम ‘आर्यावर्त’ रखा गया
राजनीतिक अवस्था :-
सर्वप्रथम जब आर्य भारत में प्रवेश किए तो उनका यहां के दास अथवा दस्यु कहे जाने वाले लोगों से संघर्ष हुआ। अंततः आर्यों को विजय मिली ऋग्वेद में आर्यों के पांच कबीले के होने की वजह से पंचजन्य कहा गया। ये थे- पुरु, अनु, यदु, द्रुह्यु एवं तुर्वश। भरत, क्रिवि एवं त्रित्सु आर्य शासक वंश के थे। भारत कुल के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। इनके पुरोहित वशिष्ठ थे।
ऋग्वेद के 7वें मंडल में दसराज्ञ युद्ध का उल्लेख है, यह युद्ध पुरुषणी नदी (रावी) के किनारे भरत वंश के राजा सुदास और दस राजाओं (पुरु, यदु, तुर्वश, अनु, द्रुह्यु, अकिन, भलासन, पक्थ, विषानिन और शिव) के बीच लड़ा गया था। इसमें भरत राजा सुदास की विजय हुई थी। दस राजाओं का युद्ध पश्चिमोत्तर प्रदेश में बसे हुए पूर्व कालीन जल तथा ब्रह्मावर्त के उत्तर कालीन आर्यों के बीच उत्तराधिकार के प्रश्न पर लड़ा गया था। कुछ समय बाद पराजित राजा पुरु और भरत के बीच दोस्ताना सम्बन्ध स्थापित होने जाने से एक नवीन ‘कुरु वंश’ की स्थापना की गयी।
ऋग्वैदिक काल में समाज कबीले के रूप में संगठित था, इस कबीले को जन भी कहा जाता था। कबीले या जन का प्रशासन कबीले का मुखिया करता था, जिसे ‘राजन’ कहा जाता था। इस समय तक राजा का पद अनुवांशिक हो चुका था। राजा की अनेक उपाधियाँ थी- विशपति, गणपति, ग्रामिणी आदि। ग्राम के मुखिया को ‘ग्रामिणी’ एवं विश् का प्रधान ‘विशपति’ कहलाते थे।
कबीले के लोग स्वेच्छा से राजा को जो कर देते थे उसे बली कहा जाता था। ऋग्वेद में जन शब्द का उल्लेख 275 बार मिलता है जबकि जनपद शब्द का उल्लेख एक बार भी नहीं मिलता। राजा का प्रमुख सहयोगी ‘पुरोहित’ कहलाता था। यानि राजा का राइट हैंड पुरोहित होता था। आप कह सकते हैं कि राजा के बाद सबसे प्रमुख स्थान पुरोहित का ही होता था। जैसे विश्वामित्र और वशिष्ठ ये पुरोहित के श्रेणी में आते थे। अन्य मंत्री जैसे- सूत, रथकार, कम्मादि आदि को ‘रत्नी’ कहा जाता था।
कुछ कबीलाई संस्थाएं अस्तित्व में थे, जैसे- सभा, समिति, विदथ। अथर्ववेद के अनुसार सभा और समिति प्रजापति की दो पुत्रियाँ थी।
सभा :
सभा वृद्ध (श्रेष्ठ) एवं अभिजात (संभ्रांत) लोगों की संस्था थी। यह वरिष्ठ जनों की संस्था हुआ करती थी। जो सम्मानजनक और वरिष्ठ व्यक्ति हुआ करते थे वो आया करते थे इस सभा के अंदर।
आप एक प्रकार से इसे आज के जो राज्यसभा है वह समझ सकते हैं। आप जानते हैं कि राज्यसभा में ज्यादातर जो है वो वरिष्ठ व्यक्ति को ही लिया जाता है। और यही एक सबसे बड़ा कारण है कि राज्यसभा को उच्च सदन कहा जाता है। आपने आज तक हमेशा पढा होगा कि राज्यसभा को उच्च सदन और लोकसभा को निम्न सदन कहते हैं। तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण क्या है? जबकि सबसे महत्वपूर्ण लोकसभा है। तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि उसको यानी राज्यसभा को उच्च सदन इसलिए कहा जाता है क्योंकि उसमें वरिष्ठ, वृद्ध और सम्मानजनक जैसे व्यक्ति आते हैं। तो आप इस सभा को एक प्रकार से अभी का राज्यसभा ही समझिए। ऋग्वेद में 8 बार सभा की चर्चा की गयी है।
समिति :
यह एक आम जन प्रतिनिधि सभा (केन्द्रीय राजनीतिक) थी। जो भी जनसाधारण हैं वह सभी इस समिति के अंतर्गत आया करते थे। समिति राजा का निर्वाचन करती थी तथा उस पर नियंत्रण रखती थी। इस समिति को राजा को पद से हटाने का भी अधिकार था। यह एक प्रकार से वैधानिक संस्था थी जो राजा को नियंत्रण में रखती थी। समिति के अध्यक्ष को पति या ईशान कहा जाता था। समिति में राजकीय विषयों पर चर्चा होती थी तथा सहमति से निर्णय होता था। आप इस समिति को एक प्रकार से अभी का लोकसभा कह सकते हैं। ऋग्वेद में 9 बार समिति की चर्चा हुई है।
विदथ :
यह आर्यों की सर्वप्राचीन जन प्रतिनिधित्व संस्था थी। जो जनता का प्रतिनिधित्व करती थी। ऋग्वेद में विदथ का उल्लेख 22 बार हुआ है। उत्तर वैदिक काल में विदथ का उल्लेख एक बार भी नहीं मिलता है।
भगदुध/भागदुग :
यह एक विशिष्ट अधिकारी होता था जो राजा के अनुयायियों के बीच बलि (भेंट) का समुचित बंटवारा एवं कर का निर्धारण करता था।
प्रशासनिक इकाई :-
ऋग्वैदिक काल में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल या गृह या परिवार था जिसका मुखिया कुलप या गृहपति कहलाता था। उसके ऊपर ग्राम था। ग्राम का शासन ग्रामणी देखता था। उसके ऊपर विश होता था। विश ग्राम से बड़ी प्रशासनिक इकाई थी। इसके मुखिया को विशपति कहा जाता था। कई विश से मिलकर बनता था जन/प्रान्त। जैसे आज का जो राज्य है उसको कहते थे जन। इसका प्रमुख कहलाता था जनस्य/गोपा/गोप। और सबसे बड़ी इकाई थी राज्य/राष्ट्र जिसका प्रमुख राजा कहलाता था।
ऋग्वेदिक भारत का राजनीतिक ढाँचा आरोही क्रम में – (i) कुल, (ii) ग्राम, (iii) विश, (iv) जन और (v) राष्ट्र।
आर्थिक जीवन :-
आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। लोहे की खोज इस समय तक नहीं हुई थी तो यह पशु चारण किया करते थे। ये एक जगह से दूसरे जगह पर जाते थे यही वजह है कि जमीन का भी उस समय कोई महत्व नहीं था। इनके निवास में स्थिरता नहीं आयी थी। इनका एक जगह कोई फिक्स निवास स्थान नहीं था। क्योंकि इन्हें पशुपालन और पशुचारण करना होता था इसलिए इन्हें नए-नए जगह पर जाना पड़ता था।
कृषि उतना लोकप्रिय नहीं थी। ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख मात्र 24 बार ही हुआ है, जिसमें अनेक स्थानों पर यव एवं धान्य शब्द का उल्लेख मिलता है। गाय और घोड़ा इनका प्रिय पशु था। ‘गो’ शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में 174 बार हुआ है। गाय को पवित्र माना जाता था। गाय को अघन्य (न मारने योग्य) माना गया है। अधिकांश युद्ध गायों के लिए लड़े गए थे। पुरोहितों को गायें और दासियाँ ही दक्षिणा के रूप में दी जाती थी। दान के रूप में भूमि न देकर दास-दासियाँ ही दी जाती थी। कृषि उतना लोकप्रिय नहीं थी। ऋग्वेद में कृषि का उल्लेख मात्र 24 बार ही हुआ है, जिसमें अनेक स्थानों पर यव एवं धान्य शब्द का उल्लेख मिलता है।
1000 ई०पू० के आस-पास लोहे का प्रयोग शुरू हो जाता है। लोहे के लिए श्याम अयस् तथा तांबे के लिए लोहित अयस् जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता था।
मुद्रा के रूप में गाय और निष्क (आभूषण) का प्रयोग होता था। यानी उस समय वस्तु विनिमय विद्यमान थी। एक वस्तु देकर दूसरी वस्तु प्राप्त करना ये कहलाता है वस्तु विनिमय। निष्क प्रारम्भ में हार जैसा कोई स्वर्णाभूषण था, बाद में इसका प्रयोग सिक्के के रूप में प्रयुक्त होने लगा।
सामाजिक जीवन :-
ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था। पिता ही परिवार का मुखिया होता था। ऋग्वैदिक काल में वर्णव्यवस्था कर्म/व्यवसाय पर आधारित था। ऋग्वेद में एक छात्र लिखता है कि “मैं एक कवि हूँ मेरे पिता एक चिकित्सक हैं और मेरी माता चक्की चलाती है”। अर्थात एक राजा कर्म से पुरोहित हो सकता था और पुरोहित राजा। महर्षि विश्वामित्र क्षत्रिय होते हुए भी कर्म से ब्राह्मण थे। यानि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र उन चारों में अगर शूद्र के अंदर एक ब्राह्मण की योग्यता है ब्रह्म मतलब ज्ञान देने वाला तो वो ब्राह्मण बन सकता था। अगर उसकी भुजाओं में बल है तो वो क्षत्रिय बन सकता था। अगर उसमें व्यापार करने की क्षमता है तो वो वैश्य बन सकता था। अगर ब्राह्मण के पुत्र में योग्यता नहीं है तो वो बाकियों के श्रेणी में आ जाता। ये सब चीजें अपना कर्म के अनुसार अपनी योग्यता के अनुसार बदला जा सकता था।
प्रारम्भ में सिर्फ तीन वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का ही उल्लेख मिलता है। शुद्र का उल्लेख ऋग्वेद के दसवें मण्डल का पुरुषसूक्त में मिलता है और दसवां मण्डल बाद में जोड़ा गया। घरेलू दास प्रथा का भी प्रचलन था। जाति प्रथा, अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव उस समय विद्यमान नहीं था।
ऋग्वैदिक समाज में महिलाओं की स्थिति सम्मानीय थी। वे अपने पति के साथ यज्ञ कार्य में सम्मिलित होती एवं दान दिया करती थी। पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था। स्त्रियां भी शिक्षा ग्रहण करती थी। ऋग्वेद में लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, अपाला एवं विश्वास जैसी विदुषी स्त्रियों का जिक्र मिलता है। सामान्यतया बाल विवाह एवं बहु विवाह का प्रचलन नहीं था। विवाह की आयु लगभग 16 से 17 वर्ष होती थी। विधवा विवाह, अंतरजातीय एवं पुनर्विवाह की संभावना का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। जीवन भर अविवाहित रहने वाली लड़कियों को ‘अमाजू’ कहा जाता था। ऋग्वेद में विष्पला नाम की एक महिला का उल्लेख एक योद्धा के रूप में मिलता है।
● देखिए सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी जबकि वैदिक सभ्यता/आर्य सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।
● आर्यों का मुख्य-पेय पदार्थ सोमरस था। यह वनस्पति से बनाया जाता था।
धार्मिक स्थिति :-
यज्ञ, विधि और अनुष्ठान ये उस समय प्रमुख होते थे। देवताओं में इनके लिए सर्वाधिक प्रिय एवं प्रमुख देवता इन्द्र थे। ऋग्वेद के करीब 250 सूक्तों में इनका वर्णन है। इन्हें वर्षा का देवता माना जाता था। इन्हें ‘पुरन्दर’ (किलों को नष्ट करने वाला) कहा जाता था।
ऋग्वेद में दूसरा महत्वपूर्ण देवता ‘अग्नि’ थे, जिनका काम था मनुष्य और देवता के मध्यस्थ की भूमिका निभाना। तीसरा स्थान वरुण का माना जाता है, जिसे समुद्र का देवता, विश्व के नियामक और शासक सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात का कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य का निर्माता के रूप में जाना जाता है। ऋग्वेद के 7वां मण्डल वरुण देवता को समर्पित है। ऋग्वेद का 9वां मण्डल सोम देवता को समर्पित है।
2. उतर वैदिक काल (1000-600 ई०पू०)
राजनीतिक स्थिति :-
इस समय तक राजा का पद वंशानुगत हो चुका था। पहले समिति जो है वो राजा का चुनाव किया करती थी। यानी ऋग्वैदिक काल में गणतन्त्रात्मक शासन थी। लेकिन अब यहाँ राजा का पद वंशानुगत हो चुका है। राजा पहले से ज्यादा शक्तिशाली हो चुका है और राजत्व का दैवीय सिद्धान्त लागु हो चुका है। राजत्व का दैवीय सिद्धान्त से मतलब है कि राजा जो है वो ईश्वर का प्रतिनिधि है। और ईश्वर ने राजा को शासन करने के लिए भेजा है। राजा की अब उपाधि सम्राट/विराट हो चुकी थी। नियमित सेना होने लगी क्योंकि जब से लोहे की खोज हुई तब से हथियार बनने लगे और राजा अब नियमित सेना रखना शुरू कर दी। नियमित कर लगाने शुरू कर दिए।
विदथ का उल्लेख उत्तर वैदिक काल में नहीं मिलता है। मंत्रियों की संख्या 13 निश्चित की गई। राजा के राज्याभिषेक के समय राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता था। राजसूय यज्ञ के अनुष्ठान से यह समझा जाता था कि राजा को दिव्य शक्ति मिल गई है।
आर्थिक जीवन:-
लोहे की खोज हो जाने से अब वे एक जगह रहना शुरू कर दिए। यानी अब उनका निवास स्थान में स्थायित्व आ गया। अब इन्होंने हल बना-बना के कृषि करना शुरू कर दी। अब कृषि इस काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय बन गया। जबकि ऋग्वैदिक काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। उत्तरवैदिक काल में हल को सिरा और हल रेखा को सीता कहा जाता था। साथ ही कृषि के विकास से लघु उद्योगों का विकास हुआ। सीमित स्तर पर अब व्यापार का भी प्रारंभ हो चुका है। इस काल का व्यापार भी वस्तु विनिमय प्रणाली पर ही आधारित था। मुद्रा प्रणाली का विकास अभी तक नहीं हुआ था।
सामाजिक जीवन :-
इस काल में वर्ण व्यवस्था का आधार अब कर्म पर आधारित न रहकर जन्म/जाति पर आधारित हो चुका था। महिलाओं की स्थिति में गिरावट आ चुकी थी।
धार्मिक जीवन :-
उत्तरवैदिक काल में यज्ञ और कर्मकांड और जटिल हो चुके हैं। बलि जो है वो और भी दी जाने लगी है। इस काल में अब इन्द्र के जगह पर प्रजापति प्रमुख और सर्वाधिक प्रिय देवता हो गए थे।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु :
● ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख है, जिसमें सबसे ज्यादा बार वर्णन सिंधु नदी का है।
● ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती थी।
● ऋग्वेद में गंगा का एक बार और यमुना का उल्लेख तीन बार हुआ है।
● गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तरवैदिक काल में हुआ।
● प्रसिद्ध वाक्य सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
● गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में है जो सूर्य देवता सावित्री को समर्पित है। इस मंत्र के रचयिता महर्षि विश्वामित्र हैं।
कुछ महत्वपूर्ण ऋग्वैदिक कालीन नदियों के प्राचीन और आधुनिक नाम
कुभा – काबुल
क्रुभु – कुर्रम
गोमती – गोमल
सुवस्तु – स्वात
विपाशा – व्यास
शतुद्रि – सतलज
पुरुष्णी – रावी
आस्किनी – चेनाब
वितस्ता – झेलम
द्विसद्धति – घग्घर
सदानीरा – गंडक
तो इस पोस्ट में इतना ही। आपके प्रतियोगी परीक्षा के दृष्टिकोण से सभी महत्वपूर्ण पॉइंट्स इस पोस्ट में शामिल करने का कोशिश किया गया है। अब आप यहाँ वैदिक सभ्यता से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर का क्विज प्ले कर सकते हैं। इस क्विज में कुल 43 प्रश्न हैं तो आप इनमें से कितना स्कोर कर पाते हैं वो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताइयेगा। अगर यह पोस्ट आपको अच्छा लगा हो तो इसे अपने जरूरतमंद दोस्तों के साथ जरूर शेयर कीजियेगा।
वैदिक सभ्यता से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
Question 1 |
ऋग्वेद में वर्णित देवताओं में सबसे प्रमुख देवता कौन थे?
ब्रह्मा | |
इन्द्र | |
विष्णु | |
सूर्य |
Question 2 |
ऋग्वेद में सबसे पवित्र नदी का जिक्र था-
सरस्वती | |
सिंधु | |
गंगा | |
यमुना |
Question 3 |
आर्य सभ्यता में मनुष्य के जीवन के आयु के आरोही क्रमानुसार निम्नलिखित चरणों में से कौन-सा विकल्प सही है?
ब्रह्मचर्य-गृहस्थ-वानप्रस्थ-सन्यास | |
गृहस्थ-सन्यास-वानप्रस्थ-ब्रह्मचर्य | |
ब्रह्मचर्य-वानप्रस्थ-सन्यास-गृहस्थ | |
गृहस्थ-ब्रह्मचर्य-वानप्रस्थ-सन्यास |
Question 4 |
आर्य भारत में किस रूप में आये थे?
अप्रवासी | |
शरणार्थी | |
आक्रमणकारी | |
सौदागर तथा खानाबदोश |
Question 5 |
सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा एवं वेदांत- इन छः भिन्न भारतीय दर्शनों की स्पष्ट रूप से अभिव्यक्ति हुई-
वैदिक युग में | |
गुप्त युग में | |
कुषाण युग में | |
मौर्य युग में |
Question 6 |
'आर्यों' को एक जाति कहने वाला पहला यूरोपियन कौन था?
जनरल कनिंघम | |
सर विलियम जोन्स | |
एच. एच. विल्सन | |
मैक्समूलर |
Question 7 |
गायत्री मंत्र का सर्वप्रथम उल्लेख कहां मिलता है?
ऋग्वेद में | |
अथर्ववेद में | |
पुराणों में | |
उपनिषद में |
Question 8 |
गायत्री मंत्र की रचना किसने की थी?
इन्द्र | |
विश्वामित्र | |
वशिष्ठ | |
परीक्षित |
Question 9 |
वैदिक गणित का महत्वपूर्ण अंग है-
अथर्ववेद | |
शुल्व सूत्र | |
छांदोग्य उपनिषद | |
शतपथ ब्राह्मण |
Question 10 |
'आर्य' शब्द का अर्थ है-
श्रेष्ठ या कुलीन | |
विद्वान या ज्ञानी | |
वीर या योद्धा | |
यज्ञकर्ता या पुरोहित |
Question 11 |
पूर्व-वैदिक आर्यों का धर्म प्रमुखतः था-
मूर्ति-पूजा और यज्ञ | |
भक्ति | |
प्रकृति पूजा और भक्ति | |
प्रकृति-पूजा और यज्ञ |
Question 12 |
भारत के राजचिन्ह में प्रयुक्त होने वाले शब्द 'सत्यमेव जयते' कहां से लिए गए हैं?
ऋग्वेद से | |
मत्स्य पुराण से | |
भगवदगीता से | |
मुण्डकोपनिषद से |
Question 13 |
वैदिक साहित्य में प्रयुक्त 'ब्रीहि' शब्द का क्या अर्थ है?
जौ | |
गेहूं | |
चावल | |
तिल |
Question 14 |
वैदिक युग के लोगों द्वारा सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग किया गया था?
लोहा | |
सोना | |
चांदी | |
तांबा |
Question 15 |
आरंभिक वैदिक काल में वर्ण-व्यवस्था आधारित थी-
जन्म पर | |
प्रतिभा पर | |
व्यवसाय पर | |
शिक्षा पर |
Question 16 |
ऋगवैदिक आर्य पशुचारी लोग थे, यह इस तथ्य से पुष्ट होता है, कि-
ऋग्वेद में गाय के अनेक संदर्भ हैं | |
अधिकांश युद्ध गायों के लिए लड़े गए थे | |
पुरोहितों को दिए जाने वाला उपहार प्रायः गायें होती थी, न कि जमीन | |
उपर्युक्त सभी |
Question 17 |
आर्यों द्वारा खोजी गयी धातु थी-
लोहा | |
तांबा | |
सोना | |
चांदी |
Question 18 |
वैदिक युग में राजा अपनी जनता से जो कर वसूल करते थे, उसे क्या कहते थे?
कर | |
बलि | |
विदथ | |
वर्मन |
Question 19 |
ऋग्वेद के किस मंडल में शूद्र का उल्लेख पहली बार मिलता है?
7वें | |
8वें | |
9वें | |
10वें |
Question 20 |
शब्द 'निष्क' का अर्थ वैदिक काल में आभूषण था, जिसका अर्थ बाद में प्रयोग हुआ, निम्न रूप है-
गायें | |
लिपि | |
सिक्का | |
शास्त्र |
Question 21 |
ऋग्वैदिक आर्य किस भाषा का प्रयोग करते थे?
द्रविड़ | |
पाली | |
संस्कृत | |
प्राकृत |
Question 22 |
'वेद' शब्द का क्या अर्थ है?
बुद्धिमता | |
ज्ञान | |
शक्ति | |
कुशलता |
Question 23 |
पूर्व-वैदिक या ऋग्वैदिक संस्कृति का काल किसे माना जाता है?
2500 ई.पू.-1500 ई.पू. | |
1500 ई.पू.-1000 ई.पू. | |
1000 ई.पू.-600 ई.पू. | |
600 ई.पू.- 1000 ई. |
Question 24 |
वैदिक युग में-
बाल विवाह प्रमुख था | |
अनुलोम विवाह स्वीकृत था | |
बहुविवाह प्रथा अज्ञात थी | |
विधवा पुनर्विवाह कर सकती थी |
Question 25 |
भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है-
ऋग्वेद | |
यजुर्वेद | |
सामवेद | |
अथर्ववेद |
Question 26 |
ऋग्वेद में कितने सूक्त हैं?
1017 | |
1025 | |
1028 | |
1128 |
Question 27 |
आर्य कब भारत आये थे?
2500 ई.पू.-1750 ई.पू. | |
2250 ई.पू.- 1500 ई.पू. | |
2000 ई.पू.-1000 ई.पू. | |
1500 ई.पू.-1000 ई.पू. |
Question 28 |
आर्यन जनजातियों की प्राचीनतम बस्ती कहाँ है?
दिल्ली | |
बंगाल | |
उत्तर प्रदेश | |
सप्त सिंधु |
Question 29 |
किस वेद में जादुई माया और वशीकरण (Magical charms and spells) का वर्णन है?
अथर्ववेद | |
सामवेद | |
यजुर्वेद | |
ऋग्वेद |
Question 30 |
आर्यों के आर्कटिक होम सिद्धांत का पक्ष किसने लिया था?
बाल गंगाधर तिलक | |
डॉ. अविनाश चन्द्र दास | |
पार्जिटर | |
जैकोबी |
Question 31 |
वेदों की संख्या कितनी है?
दो | |
तीन | |
चार | |
पाँच |
Question 32 |
ऋग्वेद का कौन-सा मंडल पूर्णतः सोम को समर्पित है?
सातवाँ मंडल | |
आठवां मंडल | |
नौंवाँ मंडल | |
दसवाँ मंडल |
Question 33 |
आर्य लोग भारत में कहां से आये थे?
ऑस्ट्रेलिया से | |
दक्षिण-पूर्व अफ्रीका से | |
पूर्वी यूरोप से | |
मध्य एशिया |
Question 34 |
वैदिक आर्यों का प्रमुख भोजन क्या था?
सब्जियां और फल | |
चावल और दालें | |
दूध और इसके उत्पाद | |
जौ और चावल |
Question 35 |
पुराणों की संख्या कितनी है?
10 | |
18 | |
20 | |
22 |
Question 36 |
'असतो मा सद्गमय | तमसो मा ज्योतिर्गमय | मृत्योर्मा अमृतं गमय |' कहाँ से लिया गया है?
उपनिषद | |
वेदांग | |
महाकाव्य | |
पुराण |
Question 37 |
योग दर्शन के प्रतिपादक कौन हैं?
गौतम | |
पतंजलि | |
शंकराचार्य | |
जैमिनी |
Question 38 |
ऋग्वैदिक आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
पशुपालन | |
व्यापार | |
कृषि | |
शिक्षा |
Question 39 |
न्यायदर्शन को किसने प्रचारित किया था?
गौतम ने | |
चार्वाक ने | |
जैमिमी ने | |
कपिल ने |
Question 40 |
किस देवता के लिए ऋग्वेद में 'पुरंदर' शब्द का प्रयोग हुआ है?
सोम | |
वरुण | |
अग्नि | |
इंद्र |
Question 41 |
प्रसिद्ध दस राजाओं का युद्ध "दसराज्ञ युद्ध" किस नदी के तट पर लड़ा गया?
गंगा | |
सिंधु | |
वितस्ता | |
पुरूष्णी |
Question 42 |
प्राचीन हिंदू विधि का लेखक किसको कहा जाता है?
पाणिनि | |
वाल्मीकि | |
मनु | |
वशिष्ठ |
Question 43 |
उत्तर-वैदिक संस्कृति का काल किसे माना जाता है?
2500 ई.पू.-1500 ई.पू. | |
1500 ई.पू.-1000 ई.पू. | |
1000 ई.पू.-600 ई.पू. | |
600 ई.पू.-600 ई. |
34/43
Nice Quiz
Maja aa gaya
40/43 thanks sir.
34 out of 43 Acha lga sir thanks
नमस्ते जी
आपने कहा की स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने आर्यों का मूल स्थान तिब्बत कहा है सत्यार्थ प्रकाश में, क्या आप बता सकते है की किस पन्ने पर उन्होंने यह कहा है ?
33/43 good work sir
43/43
Quiz Dene Ke Baad Confidence Level High Ho Jata Hai.
So Great Sir.
[email protected]
42/43
Enjoying the quiz played on each topic of history
Very knowledgeable
39 सही h
Amazing questions